Hindi Bhoot Stories - 1 in Hindi Horror Stories by jay zom books and stories PDF | हिंदी भूत स्टोरीज - भाग 1

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हिंदी भूत स्टोरीज - भाग 1

यह कहाणी सत्यघटना पर आधारीत हे.. 


        1991 बिहार : 

     विजय और राजू दोनोही सगे भाई थे !
 विजय बडा 25 साल का था , तो छोठा राजू 17 साल का था - 

    पिताजी दारु की लत से , लिवर खराब हो चल बसे थे..- दोनो को अपना माननेवाला कोई था , तो वह सिर्फ उनकी माँ थी , पर माँ को भी दो तीन दिन से बुखार चढा था, ! 

         मां बिमार होने के वजह से घर में पाणी कम था - इसिलिये वह दोनो पाणी लेने के लिये जंगल से जा रहे थे..- क्यूकी जंगल में एक पाणी का तालाब था, जहा पुरा गांव पाणी भरने आता था..
     दोनों भाई जंगल के रास्ते से जा रहे थे !
      विजयने अंधेरे में रास्ता दिखने के लिये टॉर्च साथ ली थी - टॉर्च की पीली चमक उन्हें आगे का रास्ता दिखा रही थी।

        दोनों सगे भाई बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे -  

  ऐसेही बातचीत में राजू ने उसके बडे भाई विजय से कहा..

          " भाय गांव वाले कह रहे थे, रात में यहा छलावा फिरत है- ई सच हैं का? !"   

    राजू की बात सूनके विजय अचानक से गुस्सा हो गया और जोर से बोला.. 
  

            " साला बुडबक - तुझ को अकल नही हैं का बे , तणीक सांती रख बा , रात में उस बदसूरत का नाम ना लेवत है , पता नही था का तुमको !"  
      विजय की बात सुनके - राजू एकदम शांत 
हो गया..-क्युकी विजय की बात सुन कर राजू के मन में डर सा बैठ गया था..
       

          दोनो भाईंयो को पैदल चले हुए काफी समय हो गया था - लेकिन अभी भी कहीं भी पानी के तालाब का कोई निशान नहीं दिख रहा था - 

        ना जंगल में अंधेरे और सन्नाटे के सिवाय कोई मनुष्य की हलचल दिख रही थी.. ।
      
पर हां दोनो भाइयों को पेडों के खोखले में दो या तीन बड़े, काले उल्लू दिखे थे जिनकी तीखी, भयावह पीली आंखें उन्ही दोनो को घुर के देख रही थीं।

         इसी बीच, एक काला चमगादड़ ऊपर से उड़ता हुआ आया, और चीं-चीं जैसी भयावह आवाज सें उन दोनो के सिर के उपरसे निकालता हुआ आगे चला गया - 

        इस घडी हूई हरकत से दोनों की हालत खराब हो गई थी- 

         दस मिनट और चलने के बाद दोनो भाईयों को अंतत एक पाणी से भरा तालाब दिखाई दिया.।

तालाब में निले आकाश में चमक रहा गोल चांद का प्रतिबिंब पडा दिख रहा था..
     
 दोनों भाई तालाब के पास आये, दोनों ने अपने साथ लाये घडे को पाणी से भर लिया..

             " चल राजो अब निकलते है "
विजयने अपने भाई से कहा दोनो घडा लेके चलने लगे..

   विजय आगे चल रहा था और राज थोडा पीछे चल रहा था।  -

 दोनों के चारों ओर कोहरे की दीवार थी - ऐसा लग रहा था जैसे धुंध किसी अमानवीय शक्ति के आदेश पर आगे बढ़ रही हो।

      अचानक  चलते समह राज को एहसास हुआ कि कोई चोर की तरह चुपके से उसका पीछा कर रहा है।

     राजू आपने जगह पर वहीं रुक गया 
  उसने मुड़कर पीछे की ओर देखा, दोनों आँखें बायीं और दायीं ओर घुमायीं।  

             लेकिन पीछे काले अँधेरे के अलावा कोई नहीं था - ! राजू फिर अपने भाई के पीछे चलने लगा..-  थोड़ी दूर जाने के बाद फिर वैसा ही महसूस हुआ।  कोई पीछे चल रहा है..

     राजूने फिरसे पीछे मूडकर देखा , पर पीछे कोई नही था.. 

    राजू फिर चलने लगा - थोड़ी देर बाद उसे अपने पीछे पैरों की धप धप जैसी -   आवाज़ सुनाई दी, 

         राजू को अब शायद अहसास हो गया - कोई तो जरूर उसके पीछे है - राजू ने जल्दी से विजयको आवाज लगाई, 

     "भाई, कौनो हमार पीछे कर रहा है!"   दोनों भाईयोने एक साथ पीछे देखा - विजय ने हात में ली हुई टॉर्च की लाईट अंधेरे में घुमाई - पर कुछ भी दिखाई नही दिया....   

    " राजो तुझे वहम हुआ होगा चल" विजयने कहा - दोनों फिर चलने लगे।

थोडी देर चलने के बाद ..
        
               अचानक, एक दूधिया रंग की गाय विजयऔर राजू की ओर दौड़ती हुई आई - उसके दूधिया शरीर पर काले धब्बे थे - उसके सिर पर बडे नुखीले सींग थे, वह लगभग छह फीट लंबी और पांच फीट चौड़ी थी।

विजय और राजू दोनों ही सतर्क होकर जल्दी से गाय के रास्ते से हट गए। गाय सामने से आई वैसे ही आगे चली गई और अंधेरे में एकदम गायब हो गई...

            " राजो, क्या तुम ठीक हो?"  विजय ने चिंतित स्वर में पूछा..!   

   राजूने बस सिर हिलाकर हाँ कहा.. और बोळा

         "भाई, मैंने इतनी बड़ी गाय कभी नहीं देखी!"  राज ने अविश्वसनीय स्वर में कहा। 

राजू के वाक्य पर विजयने ज्याद कुछ नही कहा बस बोला..
        
      "चल जल्दी घर चलते है, बहूत समय हो गया है.." विजयकी आवाज़ में डर का भाव था।
उसकी आवाज एकदम शांत हो गई थी..

  दोनो भाई फिरसे चलने लगे - पंधरा मिनिट हो गये होंगे - की तभी ..

         अचानक बहुत तेज कर्कश आवाजसे चिल्ल्ती हुई वही सफेद गाय ईन दोन्हो की ओर दौड़ती हुई आई।

        दोनो भाईंयो को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि अचानक उनके सामने गाय दौड़कर आ गई थी.. - 

            जिससे दोनों बुरी तरह डर गए, दोनों के कंधों से पानी से भरी घडीये जामिन पर गिर गये....-

         एक जोरदार आवाज हुई और सारा पानी ज़मीन पर फैल गया।

        वह गाय सामने से आई वैसेही आगे जाकर अंधेरे में एकदम से भुत की तरह गायब हो गई... 

        विजय हे दृष्य देखकर एकदम हक्का -बक्का सा रह गया, उस्की आंखे उल्ली जितनी बडी होगई , चेहरा पसीनेसे लथपथा गया.. 

         " भाई , का हूआ? और तू ईतना घबरा काहे गयो हैं?"  राजू ने अपने भाई से पूछा. 

         


"कुछ भी ठीक नहीं है राजू , हम दौनों को ससूरा छलावा पकड लिये है!"

         " का मतलब ?"  राजू ने बिना समझे पूछा।

         "अरे राजो हमारे साथ कुछ बुरा हो रहा हैं, मुझे लगता है कि हम किसी छलावे भुत जाल में फंस गए हैं! हमें अब तक घर तक पहुँच जाना चाहिये था - , लेकिन हम अभी भी नहीं पहुँच पाए हैं, बेशक - छलावा हमार रास्ता रोक दिये हैं भाई..! हम बस जंगल में इधर-उधर घूम रहे हैं..!"   अपने भाई की बात सुनकर राजू बहुत डर गया। 

      "हेहेहेहेहेह्हेह्ह  अचानक, अंधेरे से कर्कश आवाज में एक राक्षसी, परेशान करने वाली हंसी आई।

         उस हंसी के साथ, आस-पास के पेड़ की शाखाएं धीरे-धीरे हिलने लगीं - 

        

 
    " ए राजो भग ए भाग, ससुरं का नाती..!"
      विजय एकदम से चिल्लाया, उसने विजु का हाथ पकड़ा - वह दोनो भागने लगे ..

      दस मिनट हो गए होंगे, दोनों जरा रुक गये- दोन्हों की सांसें फूल रही थीं। गला सूख रहा था - छाती धड़क रही थी।

        जब तक कि उन दोनों की साँसें सामान्य नहीं हुई, वे दोनों एक पेड़के पास बैठ गए - 

   थोडासा समय बीत गया और फिर से एक गाई की हंबरने की आवाज सुनाई दी, और उस आवाज के साथ वही गाई उन्ह दोनों के नजर के सामने से भागती हुई आगे चली गई, और सफेद धूये में बदल के गायब हो गई..
        
         अपनी समझ से परे, अपने सामने यह दृश्य देखकर दोनों के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए - 
  " हिहिहिहिहिही!"  राजू के कान में हंसी की आवाज घुमी..- 
     राजूने उस आवाज की तरफ , मतलब धीरे से उस पेड़ के उपर देखा ..
     जैसे ही उसने पैड की तरफ देखा उसकी छोठी आंखे कछूवे की तरह बडी हो गई.. 
डर से वह कांपने लगा..

        विजयने आपने भाई राजू की तरफ देखा        "का हूआ राजू ईतना डर काये रहा है बे?"  
  विजने पुछा..- पर राजू की डर से हालत खराब हो गई थी, वह चुपचाप उपर ही देख रहा था..

अंत में विजयने भी सिर उठाके उपर देखा .. और उसकी भी डर से हालत खराब हो गई !
        
पैड की एक शाखा पर एक कुरूप बूढ़ी का छलावा बैठा थां.-

   वह छलावा बुढीया हल्के भूरे रंग की नौ-नुकीली साड़ी पहने हुए थी, ऊपर एक काला ब्लाउज था , नीले रंग के चमड़े से बने पैर, उन पैरों में खुरों की तरह तीखे नाखून थे - वह छलावा बुढीया अपने नाखून हिला रही थी.
 उस बुढ़िया का पूरा शरीर मुर्दाघर में पड़ी लावारिस लाश जैसा लग रहा था... उसकी त्वचा सफेद और काली थी, आंखों के नीचे खून जम गया था, जिससे काले घेरे बन गए थे। - और वे पीली-पीली आंखें, जिनमें मिरी की झलक थी.

उस छलावा बुढीया को देखते ही दोनों भाई पेड के निचे से उठे और भागने लगे.
        
     दोनो भाइयों को पता लग गया था की वह बूढ़ी औरत छलावा भूत हैं।

     दोनो भाई कुच देर बाद फिरसे एक जगह रुक गये..

   " भाई अब का करे ?" 
राजूने विजय से पूछा .
        
         "अब तो भगवान ही हमें बचा सकता है, राजू, क्युकी वह छलावा बुढीया उसका मन भरतेही हमे मार देगी.. !" विजय ने भयभीत स्वर में कहा।

           अचानक गाय के रंभाने की कर्कश आवाज आई - दोनो भाईयोने सामने मूडकर देखा.

न दोनों के सामने वही छह फुट लंबी गाय खड़ी थी - उसकी आंखें अंधेरे में लाल लपटों की तरह चमक रही थीं।

      और गाय के नथुनों से गर्म भापदार साँस निकल रही थी..- वह बूढ़ी छलावा औरत गाय की पीठ पर बैठी थी..

  बुढ़िया की पीली आँखें ईन दोनो को देख रही थी..


"हेहेहेहे, मिल गये ..मिल गये दोनो अब मैं तुम दोनों को मार डालूँगी.. मैं तुम दोनों की हड्डियाँ और मांस कुतर कर खा जाउंगी.हेहेहे!" 
छलावा बुढ़िया के मुँह से कर्कश स्वर निकला...

   तभी  वह अजीब, डरावनी गाय जोर से चिल्लाई - उसकी लाल, ज्वलंत आंखें गेंदों जितनी बड़ी हो गईं।

         गाय छोटे-छोटे कदम आगे बढ़ाती हुई उन दोनों की ओर आने लगी।

    गाय के शरीर पर बैठा बूढीया का भूत दोनों हाथों से ताली बजाने लगा।

         विजय और राजू दोनो भाईयोने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं, मानो वे अपनी भयानक मौत को देख नहीं सकते थे।
   अचानक एक युवक उन दोनों के सामने आ खड़ा हो गया, उसकी पीठ उनकी तरफ थी, उसके हाथ में एक छड़ी थी। छड़ी पर लाल और पीली रस्सियाँ बंधी थीं - छड़ी पर चार या पाँच घंटियाँ लगी हुई थीं।

  उन्ही घंटियों की आवाज विजय और राज दोनों के कानों में पड़ी।

         दोनों ने आँखें खोलकर सामने देखा - एक पाँच फुट लम्बा, गठीला युवक उनके सामने खड़ा था - युवक का सुनहरा, तेजस्वी शरीर अँधेरे में भी चमक रहा था - उसके सिर के काले लम्बे बाल दोनों कंधों से पीठ तक फैले हुए थे। - एक पीली धोती के अलावा उसका पूरा शरीर नंगा था।
युवक के शरीर से चंदन की सुगंध आ रही थी।
        वह युवक निडरता से, निर्भयता से, उस विशाल छः फुट लम्बी गाय और उस बूढ़ी औरत की आत्मा के सामने अपनी छाती खोलकर खड़ा था। 

         उस युवक के आने से विजय और नीरू दोनों को सुरक्षा का अहसास हुआ।

         उस ध्यान में उस युवक के आने से व्यवधान उत्पन्न हुआ - गाय अपने पैरों को जमीन पर रगड़ रही थी, अपना सिर ना ना करते हिला रही थी, तथा अपने नथुनों से गर्म सांसें छोड़ रही थी।

         " ए राम, ए राम्या! तुम यहाँ क्या कर रहे हो, जाओ जाओ..यहाँ से जाओ!"  उस बूढ़ी छलावा औरत ने डरपोक स्वर में कहा..

         "मैं इन दोनों को बचाने आया हूँ!"
युवक के मुँह से कर्कश, आज्ञाकारी स्वर निकला!   उस आवाज़ में बहुत भावना थी.

         "और तुम दोनों!"  युवक ने बिना पीछे मुड़े बोलना शुरू कर दिया।  "मैं इस छलावा बुढ़िया को रोकूंगा, तब तक तुम दोनों यहां से निकल जाओ - गांव के लोग तुम्हें ढूंढने आए हैं, जाओ, और चाहे कुछ भी हो जाए, पीछे मुड़कर मत देखना.. जाओ..!" 
युवक की बात सुनकर विजय और राजू दोनों बिना पीछे देखे सीधे आगे भाग गए। 

        
उन दोंनो को पीछे से भयंकर रोने, चीखने, और कभी-कभी हँसने की आवाजें सुनाई दे रही थीं - 
पीछे से एक धप-धप की आवाज भी सुनाई दे रही थी - मानो वह गाई पीछे से आ रही हो।

         लेकिन विजय और राजू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा -      अंत में, पांच-दस मिनट तक भागने के बाद, उन दोनों को अंधेरे में जरा दूर - आग की रोशनी दिखाई दि, गांव के कुछ लोग मशाल लेके ऊन दोनों को ढुंढने आये थे 

        विजय और राजू दोनों भाई , बच गये थे - वह दोनो गाववालों के साथ घर आ गये.


        घर आते ही उन दोन्हों को दिखा.
 

       कि उनकी माँ भगवान श्री राम की फोटो के सामने बैठकर दीपक जलाकर श्री राम रक्षा का पाठ कर रही हैं, और उस फोटो में श्री राम की फोटो - नीले कमल के समान श्याम मुख, कमल के समान पुतलियों वाली दो आंखें - जटाओं का मुकुट पहने हुए.. - हाथों में तलवार, गदा, धनुष बाण लिए हुए - उस फोटो को देखते ही विजयराव और राजू दोनों की आंखें भर आईं, क्योंकि कुछ देर पहले जिस युवक ने उन दोनों को बचाया था उसका चेहरा बिल्कुल भगवान श्री राम जैसा दिख रहा था..   

         अपने बच्चों को सुरक्षित लौटते देख विजय की माँ ने श्रीराम जी के फ़ोटो को हात जोडे...

      विजयराव और राजू दोनों ने जंगल में घटी भयावह घटना की कहानी अपने माँ और आसपास खड़े लोगों को सुनाई - जिसे सुनकर वहां मौजूद कुछ लोगों ने कहा...

         " चाची के श्री राम रक्षापथ के कारण साक्षात् श्री राम तुम दोन्हो बच्चों को बचाने आये... थे, तुम लोग सचमुच बहुत भाग्यशाली हो!"

समाप्त: ..